सोमवार, 11 जुलाई 2011

ले लीजिए स्वर्णकाल का आनंद

यह बात सही है कि हर किसी की जिंदगी में कभी न कभी स्वर्णकाल आता ही है। उपर वाला निश्चित ही एक बार जरूर छप्पर फाड़कर देता है, ये अलग बात है कि कुछ लोग उस छप्पर में समा जाते हैं तो कुछ लोग पूरे छप्पर को समा लेते हैं। कर्म तो प्रधान होना चाहिए, मगर भाग्य से भरोसा भी नहीं उठना चाहिए, क्योंकि यह तो सभी जानते हैं, जब स्वर्णकाल का दौर चलता है तो फिर फर्श से अर्श की दूरी मिनटों में तय होती है, मगर जब संक्रमणकाल चलता है तो फिर अर्श से फर्श तक आने में पल भर नहीं लगता।
अब देखिए, पीएम साहब को। हो सकता है, पीएम बनने की ख्वाहिश उनके मन में रही होगी, मगर बैठे-बिठाए ऐसा स्वर्णकाल आएगा, ऐसा वे सपने में भी नहीं सोचे रहे होंगे। तभी तो जी भर कर वे स्वर्णकाल का आनंद ले रहे हैं। भ्रष्टाचार के गटर से बाहर आ रही गंदगी के वे मुखिया हैं और फिर भी उन्हें ईमानदार कहे जा रहे हैं ? भला, इससे बड़ा ‘स्वर्णकाल’ क्या हो सकता है ? खुद की जमात के लोग कह रहे हैं कि पीएम, अब काबिल नहीं रहे, युवराज की ताजपोशी कर दो। कुछ जमाती लोग दबी जुबान से पीएम की कुर्सी तोड़ने में लगे हैं, मगर पीएम साहब कह रहे हैं, अभी उन्हें उपरी हुकूमत ने इशारा नहीं किया है, जब कर देंगे, तब कुर्सी की मोह से किनारे हो लेंगे। विरोधी व एक तबका, उन्हें यह कह रहे हों कि वे कमजोर हैं, मगर वे पूरे जोश-खरोश के साथ अटल हैं और रटारटाया जवाब दे रहे हैं, वे इस ढलती उम्र में भी देश में भ्रष्टाचार, घोटाले, भुखमरी से निपटने अकेले ही पर्याप्त हैं, किसी का साथ नहीं चाहिए, बस एक ही नाम है, जिनका सहारा चाहिए ? साथ ही चुटेले अंदाज में वे कह सकते हैं, बुढ्डा होगा तेरा बाप, क्योंकि आज यही खुमारी उम्रदराज लोगों में छाई हुई है। ऐसे में इस जुमले से हमारे पीएम साहब कैसे दूर हो सकते हैं, क्योंकि दम रखते हैं, तभी तो किसी से कम नहीं लगते हैं।
ये अलग बात है कि देश, भ्रष्टाचार की गर्त में चला जा रहा है, मगर उनका रूख स्पष्ट नहीं है। देश दिन-ब-दिन खोखला होता जा रहा है, सफेदपोश, देश की संपत्ति को काले बनाने में लगे हैं। खुद के साथ कंधे से कंधे मिलाकर बरसों तक राग आलापने वाले कुछ लोग, जेल की चारदीवारी में हैं। फिर भी हमारे पीएम हैं, जैसे लगता है, उनका चल निकला है। एक बार नहीं, देश की उदार जनता ने उन्हें दो बार मौके दिए हैं और स्वर्णकाल का पूरा आनंद लेने का अवसर मिला है, लेकिन वही जनता, बेकारी, भ्रष्टाचार, घोटाले के संक्रमण से सूख रही है। अब क्या कहें पीएम जी, आपको और आपके राजनीतिक जमातियों को ? जनता कर भी क्या सकती है, उसे जो अधिकार मिला है, उसका वे बंटाधार कर चुकी है। ये तो वही हुआ, जैसे ‘चिड़िया चुग गई खेत, अब काहे पछताय’। जनता के लिए सिवाय ढांढस के कुछ नहीं है और उपरी हुकूमत में स्वर्णकाल का रंग चढ़ा है।

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