गुरुवार, 29 सितंबर 2011

गरीबी के झटके

देखिए, गरीबों को गरीबी के झटके सहने की आदत होती है या कहें कि वे गरीबी को अपने जीवन में अपना लेते हैं। पेट नहीं भरा, तब भी अपने मन को मारकर नींद ले लेते हैं। गरीबों कोएसीकी भी जरूरत नहीं होती, उसे पैर फैलाने के लिए कुछ फीट जमीन मिल जाए, वह काफी होती है। गरीब, दिल से मान बैठा है कि अमीर ही उसका देवता है, चाहे जो भी कर ले, उसमें उसका बिगड़े या बने। गरीबी का नाम ही बेफिक्री है। फिक्र रहती है तो बस, दो जून रोटी की। रोज मिलने वाले झटके की परवाह कहां रहती है ?
गरीबों को झटके पर झटके लगते हैं। गरीबी, महंगाई के बाद, अब भ्रष्टाचार से झटके लग रहे हैं। गरीबों के हिस्से का पैसा अमीरों की तिजोरियों की शान बनता जा रहा है। अब तो इन पैसों ने अपना रूप भी बदल लिया है। कभी यह पैसा सफेद होता है, कभी काला। सफेदपोश अमीर अपनी मर्जी के हिसाब से पैसे का रंग बदलते रहता है। इतना जरूर है कि इन बीते सालों में न तो गरीबी का रंग बदला है और न ही गरीबों का। गरीबों की देश में इतनी अहमियत है कि ‘जनसंख्या यज्ञ’ में नाम शामिल होता है, मगर जब ‘योजना यज्ञ’ शुरू होता है, फिर उसमें ओहदेदारों की वर्दहस्त होती है। गरीब कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। गरीबी, भीड़ तंत्र की महज हिस्सा बनती है और गरीब, सफ ेदपोश अमीरों के लिए होता है, मजाक।
देश से गरीबी हटाने के दावे होते हैं, मगर गरीबी पर तंत्र हावी नजर आता है। जनसंख्या जिस गति से बढ़ रही है, उसी गति से गरीबी भी बढ़ी है। देश में गरीबी के साथ अब हर क्षेत्र में उत्तरोतर प्रगति हो रही है। देश में महंगाई बढ़ रही है। कोई भी भ्रष्टाचार करने में पीछे नहीं है। दुनिया में हम नाम कमा रहे हैं। भ्रष्टों की उच्चतम श्रेणी में कतारबद्ध हैं, जैसे कोई तमगा मिलने वाला है। सरकार ने जैसे ठान ही ली है कि देश से गरीबी खत्म की जाएगी। भले ही सही मायने में ऐसा न हो, मगर कागजों में हर बात संभव होती है। जैसा सोच लिया, वैसा हो जाता है। यही कारण है कि गरीबों की आमदनी पर भी नजर पड़ गई है। भूखे पेट की चिंता करने वाले गरीबों को इस बात का अब डर लगा रहता है कि कहीं उसके घर आयकर का छापा न पड़ जाए। सरकार ने आय निश्चित की है, उसके बाद बहुतो गरीब, अमीरों की श्रेणी में गया है। यह भी कम उपलब्धि की बात नहीं है कि रातों-रात व एक ही निर्णय से, देश से गरीबी कम हो गई और गरीबों को काफी हद तक अस्तित्व मिट गया।
भ्रष्टाचार और गरीबी में अब तो छत्तीस का आंकड़ा हो गया है। भ्रष्टाचार कहता है, वो जो चाहेगा, करेगा, जिसको जो बिगाड़ना है, बिगाड़ ले। ज्यादा से ज्यादा ‘तिहाड़’ ही तो जाना पड़ेगा। वहां भी मजा ही मजा है। ऐश की पूरी सुविधा। बाहर इतराने को मिलता है तथा लोगों का कोपभाजन बनना पड़ता है। लोग रोज-रोज किरकिरी करते हैं। भ्रष्टाचार कहता है, अब तो पूरा मन लिया है कि गरीबी हटे चाहे मत हटे, गरीबों का भला हो या न हो, इससे उसे कोई मतलब नहीं। बस, सफेदपोशों की तिजारियां भरनी है और अंदर जाने वालों का पूरा साथ देना है। उसके कुछ साथी, जरूर तिहाड़ की शोभा बढ़ा रहे हैं, इससे उसका शुरूरी मन टूटने वाला नहीं है। वह इतराते हुए कहता है कि उसकी करामात का रहस्य की परत पूरी तरह खुलना बाकी है। जो कुछ दिख रहा है, वह कुछ भी नहीं है, केवल आंखों का ओझलपन है। जिस दिन वह खुलासा कर देगा, उस दिन देश में भूचाल आ जाएगा। भ्रष्टाचार दंभ भरता है, उसी के कारण महंगाई इतरा रही है और गरीबी से इसीलिए उसका बैर भी है।
वैसे भी गरीबी तथा गरीबों ने अब तक किसी का कुछ बिगाड़ पाया है। इस तरह मेरा कौन सा बिगड़ जाएगा। गरीबों को झटके खाने का शौक है, वह उसी में खुश रहता है। जब मैंने थोड़ा झटका दिया है, इससे न तो गरीबी को बुरा लगना चाहिए और न ही गरीबों को। गरीबों को जोर का झटका भी धीरे से लगता है, तभी तो बिना ‘उफ’ किए सब सहन कर जाते हैं।

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

‘मौन-मोहन’ से मिन्नतें

हेमौन-मोहन’, आपको सादर नमस्कार। आप इतने निराश मन से क्यों अपना राजनीतिक चक्र घुमा रहे हैं। जिस ताजगी के साथ आपने देश में नई बुलंदी को छू लिए और लोगों के दिल में समाए, आखिर अब ऐसा क्या हो गया, जो आप एकदम से थके-थके से नजर रहे हैं। जिस जनता-जनार्दन के सिर पर अपनाहाथहोने की दुहाई देकर आप सत्ता तक पहुंचे, उसी हाथ की आज क्यों जनता से दूरी बढ़ गई है।आम आदमी के साथका जो नारा था, वो तो शुरू से ही साथ छोड़ गया है। निश्चित ही आपकी छवि, दबे-कुचले जनता के बीच अच्छी है, लेकिन आपके द्वारा उन्हीं लोगों की चिंता नहीं किए जाने से, वे पूरी तरह नाखुश हैं।
आपका नेतृत्व पाकर देश की करोड़ों भूखे-नंगे गरीब बहुत आनंदित थे, चलो कोई तो बेदाग छवि का व्यक्ति उनके खेवनहार बना। जब आप पहली बार सरकार में बैठे, उसके बाद कई नीतियां बनीं, जो हम जैसे गरीबों तथा अंतिम छोर के लोगों के लिए कारगर रहीं। ऐसी क्या बात हो गई, जो दूसरी बार के नेतृत्व में पूरी तरह फेल होते जा रहे हैं। आपकी आदत तो जीतने की है, आपने देश की आर्थिक दशा बदलने में अहम योगदान दिया, किन्तु अब महंगाई पर लगाम लगाने की मंशा पर, आपकी क्यों एक नहीं चल रही है ? महंगाई से देश की करोड़ों गरीब कितना त्रस्त हैं, उसकी आपको जरा भी फिक्र नहीं है ? महज चंद रूपयों के सहारे अपना और अपने परिवार का पेट पालने वाले गरीबों के चेहरे का दर्द आपको क्यों दिखाई नहीं देता ? आप हर बार क्यों ‘मौन’ हो जाते हैं ? जनता आपकी ओर टकटकी लगाए बैठी रहती है, यही तो हमारा सरकारी विधाता हैं। ये जो कहेंगे, उसके बाद से उनका भला होगा। आप तो कुछ बोलते ही नहीं, बस हमारे सिर दर्द बढ़ा दिए हैं, हर पल महंगाई को न्यौता दिए बैठे रहते हैं। आपके सहयोगी भी आपको बरगला देते हैं, आपका पूरे देश पर शासन है, लेकिन ऐसा क्या हो जाता है, जो आपकी, अपने सहयोगी के सामने घिग्घी बंध जाती है।
आपके मौन रहने को लेकर आपके विरोधी आप पर कटाक्ष करते रहते हैं। पता है, हमें कितना बुरा लगता है। आप क्यों, बार-बार दस जनपथ की ओर ताकते रहते हैं। हमने देखा है कि कुर्सी मिलने के बाद भी बड़ा से बड़ा गधा भी होशियार ‘सियार’ की तरह कार्य करता है और सत्ता के रसूख पाकर वह जैसे-तैसे निर्णय खुद ही लेता है, ये अलग बात है कि वह उस निर्णय से कितना सफल होता है ? आप मौन साधे जरूर रहते हैं, हमें मालूम है कि आपके अर्थशास्त्री दिगाम के आगे अच्छे-अच्छे नहीं ठहर सकते, फिर भी आप अपने पर विश्वास नहीं करते और दूसरा कोई, आपको गलत सलाह देकर अविश्वसनीय बना देता है। जिस दस जनपथ के रहमो-करम से आपको पदवी मिली है, है, आपका नैतिक धर्म बनता है कि आप उन्हें विश्वास में लेकर काम करें, किन्तु देश की करोड़ों जनता को भी आप पर विश्वास है कि आप उनके लिए कुछ बेहतर करेंगे ? पर आप हैं, कुछ समझते ही नहीं।
अब देखिए न, आपको सात साल से अधिक हो गए, हमारे बीच अठखेलियां करते। फिर भी हमारे लिए अनजान बने हुए हैं। हम जैसे गरीब लोगों को आप पर कितना भरोसा है कि गरीबों के आप तारणहार साबित होंगे। आप तो उल्टे ही पड़ गए और आप तो हमें महंगाई के भवसागर में डूबोने तुले हुए हैं। महंगाई से रोज-रोज मार खा-खाकर हमारा दम घुटने लगा है। कभी भी महंगाई से हमारी जान जा सकती है। वैसे भी हम जैसे लाखों लोग कई बार भूखे पेट सोते हैं, फिर भी गरीबी के मापदण्ड को आप बढ़ाए जा रहे हैं। पहले जितना मिलता था, उससे ही गुजारा मुश्किल था। उसके बाद भी आपको रहम नहीं आया और आपने एक बार फिर साबित कर दिया कि गरीबी, बड़ी कमीनी चीज होती है। हमारे भाग्य में गरीबी में पैदा होना और गरीबी में मरना लिखा है, इस बात का हमें अफसोस नहीं है, मगर अफसोस इस बात का है कि आप क्यों ‘मौन-मोहन’ बने हुए हैं। आखिर आप कब तोड़ने वाले हैं, अपना ‘मौन रहने का उपवास’, ‘मौन-मोहन’ से हमारी सबसे बड़ी मिन्नतें यही है। जिस दिन आप मौन रहना छोड़ देंगे, उस दिन हमारे दिल को बड़ी तसल्ली मिलेगी।

शनिवार, 24 सितंबर 2011

महंगाई ‘डायन’ है कि सरकार

महंगाई पर हम बेकार की तोहमत लगाते रहते हैं। अभी जब बाजार में सामग्रियां सातवें आसमान में महंगाई की मार के कारण उछलने लगी, उसके बाद महंगाई एक बार फिर हमेंडायनलगने लगी। इस बार तंग आकर महंगाई ने भी अपनी भृकुटी तान दी और कहा कि उसने कौन सी गलती कर दी, जिसके बाद उसे ऐसी जलालत बार-बार झेलनी पड़ती है। महंगाई को बार-बार की बेइज्जती बर्दास्त नहीं हो रही है। उसने सोचा, अब वह कहीं और जाकर अपनी बसेरा तय करेगी, मगर सरकार मानें, तब ना।
सरकार ने जैसे दंभ भर लिया हो कि जो भी हो जाए, महंगाई को साथ रखना ही है। ये अलग बात है कि सरकार की अपने एकला चलो की नीति से जनता, जितने भी अपना सिर खुजाए। महंगाई चाहे जितनी एड़ियां रगड़े, लेकिन सरकार चाहती है कि महंगाई, उससे हर हाल में जुड़ी रहे। सरकार की कार्यप्रणाली से लगता है कि जैसे महंगाई से उसकी चोली-दामन का साथ है, तभी तो साथ छोड़े से भी नहीं छूट रहा है। इस बात से जनता का मानसिक पारा उतरने का नाम नहीं ले रहा है, किन्तु सरकार कुछ समझती है। कहां जबर्दस्ती में अपनी फजीहत कराने तुली हुई है और जनता का कबाड़ा।
जनता बेचारी चारों ओर से त्रस्त है। कभी महंगाई आकर उसके जीवन में आग लगा देती है और कभी भ्रष्टाचार का दानव, मन की शांति छीन लेता है। जनता, महंगाई को ताने मारती है और भ्रष्टाचार को भी आह देती है। वैसे ये तो हमारी पुरानी आदत है कि हम बीमारी की जड़ के बारे में नहीं सोचते। महंगाई और भ्रष्टाचार को आखिर हमें कौन परोस रहा है ? जीवन के अंधकार खत्म होने की हम सोचते हैं, मगर बीमारी की जकड़न के बारे में नहीं सोचते। जो दोषी नहीं है, उसे ही हम पहले खत्म करने की कतार में खड़ी करते हैं। जो दिखता है, उसी पर विश्वास करते हैं, मगर जिसके द्वारा पूरा करतब दिखाया जाता है, उसकी करतूत पर गौर नहीं करते। महंगाई का भी कुछ ऐसा ही हाल है, वह शतरंज की चाल में फंसी है और हर चाल तो सरकार ही चल रही है। जनता भी दो पाटों के बीच पीस रही है और अपने सब्र के थाह पर पूरा भरोसा कर रही है।
हम लोग सुबह उठते ही महंगाई को कोसते हैं, भ्रष्टाचार को दो-चार गिनाते हैं। बाजार जाते ही आग उगलती चीजों के ताप से सन्ना जाते हैं। यह कभी नहीं सोचते कि इस संताप की खिलाफत कैसे करें ? जिसने ऐसे हालात बनाएं, उसे सबक सीखाएं। हमारी चुप रहने की पुरानी आदत है, उसी पर कायम रहते हैं। हालांकि, यह अच्छी बात है, क्योंकि कहीं ज्यादा मुंह खोला तो... हममें डर बना रहता है कि कहीं मुंह की खानी न पड़ जाए। एक बात है, ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब हम महंगाई से दो-दो हाथ नहीं करते और मुंह की भी नहीं खाते। बावजूद, हम चेतते कहां हैं ? महंगाई, हिलोर मारती हुई आती है, अंगड़ाई करती है और हम आहें भरते रह जाते हैं। भ्रष्टाचार मस्तमौला होकर आता है और पुरानी बोतल में फिर समा जाता है। जब कोई उसे हिलाने की कोशिश करता है, तब हमारी तंद्रा टूटती है।
मैं यही कहना चाहूंगा कि हमारी सोच कितना संकीर्ण है, हम महंगाई के विरोधी बन बैठे हैं, उसे ‘डायन’ बना बैठे हैं। यह कहां का भलमनसाहत है कि ‘करे कोई और भरे कोई’। इन्हीं कारणों से महंगाई भी अपनी हिकारत पर आंसू बहाती रहती है। ये अलग बात है कि उसके नाम से देश की करोड़ों आंखें खून के आंसू भी रोती हैं। ये आंसू न सरकार को दिखाई देती है और न ही, हमारे कर्णधारों को। ऐसी स्थिति में महंगाई बेचारी क्या कर सकती है। जैसे बरसों से जनता बेचारी बनी बैठी है, वैसे ही सरकार के तरकस में फंसी, महंगाई भी ‘डायन’ बन गई है। पूरे हालात पर गौर फरमाने के बाद हमें ही तय करना है कि आखिर, महंगाई ‘डायन’ है कि सरकार ?