शनिवार, 23 अप्रैल 2011

टेक्नालॉजी का फसाना

सबसे पहले आपको बता दूं कि औरों की तरह मैं भी तकनीक की टेढ़ी नजर से दूर नहीं हूं। तकनीक के फायदे कई हैं तो नुकसान तथा फजीहत भी मुफ्त में मिलती हैं। वैसे मेरे पास तो विरासत में मिली संपत्ति है और ही मैंने इतनी अकूत संपत्ति जुटाई है, जिससे जिंदगी बड़े आराम से गुजरे। मेरा तो ऐसा हाल है, जैसे बिना सिर खपाए कुछ बनता ही नहीं, मगर पिछले दिनों से इस बात को लेकर चिंतित हूं कि मैं रातों-रात लखपति क्या, करोड़पति से अरबपति बनते जा रहा हूं। दरअसल, मैंने सोचा कि जब बड़े शहरों में तकनीक की खुमारी छाई हुई है तो क्यों , मैं भी बहती गंगा में डूबकी लगा लूं। सो, मैंने अपनी एक -मेल आईडी बना ली। जब से मेरा -मेल आईडी बनी है, उसके बाद तो जैसे मेरे सामने धन कमाने का द्वार खुल गया है तथा कुबेर देव साक्षात् गए हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब मैं लखपति करोड़पति नहीं बनता। हर समय कोई कोई जैकपॉट मुझे मिला ही रहता है। ऐसा लगता है, जैसे भाग्य मेरे सिर पर आकर टिक गया है।

मैं भी गदगद हूं कि चलो तकनीक से जुड़ने का कुछ तो फायदा मिल रहा है। ठीक है, मेरे मन में अकूत धन जुटाने की ललक है, मगर मुझे यह भी मालूम है कि जब तक मैं कहीं किसी योजना में हाथ साफ नहीं करूंगा, किसी उंचे पद पर काबिज नहीं होउंगा, सत्ता की धन जुटाउ चाबी का लाभ नहीं उठाउंगा, तब तक नहीं लगता कि मैं फूटी कौड़ी जुटा सकता हूं ? अमीर बनने का सपना तो हर पल मन में समाया रहता है और मैं अपनी ओर से दो-चार पैसे जोड़कर अपनी ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश भी करता हूं। हां, इतना जरूर लगता है कि अब मेरे भाग्य का बंद कपाट खुल गया है, क्योंकि इन दिनों रोज ही लखपति से करोड़पति बनने का सुनहरा मौका जो मिल रहा है।

एक बात बता दूं, मेरे पास कोई अथाह संपत्ति नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि ई-मेल आईडी बनाने तथा तकनीक से जुड़ने का मुझे भरपूर फायदा मिल रहा है। मुझे एक बात समझ में आती है कि यदि मैं जीवन भर पाई-पाई भी जोड़ूं तो भी कभी करोड़पति बनने का नहीं सोच सकता ? मगर अब मुझे अपनी मानसिकता बदलनी पड़ रही है, क्योंकि मैं जैसे ही अपना मेल खोलता हूं तो मेरे चेहरे खिल जाते हैं। मन अमीरी दुनिया में गोता लगाने लगता है, पल भर में दुनिया की मनचाही सुविधा हाथ में नजर आती है। यह स्वाभाविक भी लगता है कि जब किसी को जैकपॉट लगेगा तो वह उछलेगा, नाचेगा जरूर ? मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही हो गई है। मेल पर ईनामी जानकारी मिलते ही मेरा अनमना मन आनंद से भर जाता है। जब कोई दो रूपये भी ईनाम में जीतता है या फिर कोई चीज, किसी सामान के साथ गिफ्ट में मिलता है। इस समय ऐसा लगता है, जैसे सारे जहां की संपत्ति हाथ आ गई है ? यह बात सोचकर हैरत में पड़ने से परे नहीं रह पाता कि मैं हर दिन करोड़ों का कृपा पात्र बनता हूं ? और तकनीक के फसाने का पूरा लुत्फ उठाने की कोशिश कर रहा हूं, किन्तु कुछ हाथ आए तो मजा आए ?

फिलहाल मैं देखते ही देखते करोड़पति तो बन गया हूं, किन्तु जेब में कंगाली छाई हुई है। तकनीक से जुड़कर अमीर बनने के सपने ऐसे पूरे होते हैं, यह जानकर मैं सोच रहा हूं कि इंटरनेट पर ऐसा कौन महान दानदाता बैठा है, जो समाज सेवा कर रहा है ? इनके सामने तो बफेट व बिल गेट्स जैसे व्यक्ति भी फेल खाते नजर आ रहे हैं ? मुझे इस बात से संतुष्टि है कि नोटों की गड्डी बटोरने के मेरे सपने, किसी तरह पूरे होते दिख रहे हैं, लेकिन मुझे यह भी सोचकर जलन होने लगी कि मुझ जैसे अन्य लोगों पर भी तकनीक पूरी तरह मेहरबान है और वे भी हर दिन लखपति-करोड़पति बन रहे हैं। कहीं आप भी इस कतार में तो नहीं है ? यदि हैं तो संभल जाइए...

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

फ्लैटों का आदर्श जुगाड़

वैसे देश में भ्रष्टाचार का बखेड़ा जहां-तहां छाया हुआ है। हर जुबान की शोभा केवल भ्रष्टाचार ही बढ़ा रहा है। कुछ महीनों पहले जब आदर्श सोसायटी के फ्लैटों का घोटाला उजागर हुआ, उसके बाद एक के बाद एक कई बडे़ भ्रष्टाचार हुए। जाहिर सी बात है, जब बात बड़ी-बड़ी हो रही हो तो छोटी बातें भला कहां ठहर सकती हैं ? खुद का नहीं, अपनों का फ्लैट के प्रति मोह ने बड़ी शख्सियतों की कुर्सी ले डूबी। ऐसा ही नजारा आदर्श सोसायटी घोटाले में दिखा। भ्रष्टाचार के बड़े भाईयों के पदार्पण बाद, कैसे कोई इन छोटे-मोटे घोटाले को याद करने की सोच सकता है ? मगर कई महीनों बाद भी फ्लैटों के आदर्श घोटाले मुझे याद हैं। इसका कारण भी है, क्योंकि मैं जिस शहर में रहता हूं, वहां मेरा कोई मकान है और ही कोई फ्लैट। केवल किराए के एक छोटे से मकान का सहारा है। ऐसे में फ्लैट में रहने की खुशकिस्मती पाने का कीड़ा मुझे रोज काटता है और मैं हर पल बेचैन हो जाता हूं। मगर मेरी किस्मत उन लोगों जैसी कहां, जिनके पास उंची पहुंच का चाबुक है ?

आदर्श सोसायटी की बंदरबाट जानने के बाद, मेरा मन बार-बार फुदक रहा है कि कैसे भी करके एक फ्लैट का जुगाड़ करना ही है। जब आदर्श सोसायटी के फ्लैट पाने में नामी-गिरामी अपना जुगाड़ भिड़ा सकते हैं तो मैं पीछे क्यों रहूं। सोच रहा हूं, जब भी शहर में इस तरह के फ्लैट बनाए जाएंगे, तब जरूर कुछ न कुछ जुगाड़ लगाउंगा। तभी एक सुंदर आशियाना का मेरा सपना पूरा हो पाएगा। देखा जाए तो एक फ्लैट बनवा पाना मेरे जैसे एक छोटे से लिख्खास के लिए मुश्किल ही है। फ्लैट में पैर पसारने का सुख पाने के लिए जुगाड़ ही सबसे बढ़िया व सरल तरीका है। यही कारण है कि मेरी नजर आदर्श सोसायटी जैसे फ्लैटों पर ही टिकी हुई है और इसी चिंता में हूं कि चाहे जितना भी तीन-पांच करना पड़ जाए, किसी का फ्लैट हड़पना पड़ जाए, फिलहाल मेरा एक ही मकसद रह गया है, फ्लैट का आदर्श जुगाड़, कयोंकि बिना फ्लैट के जीना कोई जीना है ? इसी बीच मुझे ख्याल आया, क्यों सरकार की आवास योजना का लाभ लिया जाए ? मगर यहां भी वही बंदरबाट का आलम देखकर मैं सोचने लगा कि यहां अपनी दाल गलने वाली नहीं है, क्योंकि ऐसे आवास पाने के लिए न तो हमारे पास बीपीएल का कार्ड है और न ही हम जेब गरम करने में समर्थ हैं। देखा जाए तो सरकार की आवास योजना में भी मालदार गरीबों का ही वर्चस्व है, क्योंकि गरीबों का हक मारने की परिपाटी अभी की थोड़ी न है। यह सिलसिला एक अरसे से चल रहा है, यह अचानक कैसे थम सकता है।

आदर्श सोसायटी में भी कुछ ऐसा ही हुआ, यहां भी गरीबों का हक मारने के लिए कहां-कहां से धनपशु टूट पड़े। शहीदों के फ्लैटों पर भी इस कदर टेढ़ी नजर रही कि उनके सम्मान का भी ख्याल नहीं रहा। इन बातों के ध्यान में आते ही मैं सोचने लगा कि मेरी हैसियत तो कौड़ी भर नहीं है। यहां कैसे फ्लैट का सपना पूरा हो पाएगा ? आखिर मन में आया कि जिस तरह औरों ने तिकड़मबाजी कर, फ्लैटों का जुगाड़ जमाया है, कुछ ऐसा ही कमाल करना पड़ेगा। यहां भी मैं ठिठककर रह गया, क्योंकि ऐसे जुगाड़ के लिए मेरी उंची पहुंच नहीं है। अंततः मैं अपने मन को मारकर अपने किराए के मकान के एक कोने में रम गया, क्योंकि फ्लैटों का आदर्श जुगाड़ कर पाना मेरी बस की बात नहीं है। ये तो उंचे लोगों की उंची कुर्सी के दंभी शुरूर से संभव हो सकता है, जिसके काबिल हम जैसे तुच्छ लोग कैसे हो सकते हैं ?

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

बेचारा भ्रष्टाचार !

देश, भ्रष्टाचार की आग में तप रहा है और भ्रष्टाचारी एसी की ठंडकता का मजा ले रहे हैं। इस छोर से लेकर उस छोर तक केवल भ्रष्टाचार ही छाया हुआ है। भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार हो रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे चुप बैठे हैं। देश में इतने बड़े पैमाने पर पहली बार भ्रष्टाचार होने की बात उजागर हुई है, उससे भ्रष्टाचार का रूतबा बढ़ना स्वाभाविक लगता है, मगर जिनके कारण भ्रष्टाचार का जन्म हुआ है, उन्हें तो हम भुला दे रहे हैं ? केवल भ्रष्टाचार पर ही ठिकरा फोड़ रहे हैं, जबकि सब किया धराया तो उन सफेदपोशों का है, जो देश के खजाने को जब चाह रहे, तब खोखला करने तुले हैं। जिस तरह सरकार के सामने जनता खिलौना बनकर रह गई है, कुछ उसी तरह की स्थिति भ्रष्टाचार के समक्ष भी निर्मित हो गई है, क्योंकि समस्या की असली जड़ तो सफेदपोश भ्रष्टाचारी ही हैं। जो भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और बच निकल रहे हैं। ऐसा लगता है कि यहां जनता के पास कोसने के लिए जैसे भ्रष्टाचार को फ्री कर रखे हैं।
मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के प्रति हम सब का सहानुभूति होनी चाहिए, क्योंकि जब हम भ्रष्टाचारियों की करतूत को भूल जाते हैं और सफेदपोश भ्रष्टाचारी, लोगों की आंखों का तारा बने फिरते हैं। वे जब चाहते हैं, तब सत्ता की कुर्सी पर काबिज होते हैं और भ्रष्टाचार कर हमारी छाती पर मूंग दलते हैं। फिर भी हम कहां सड़क पर उतरते हैं ? कब हम विरोध की सोचते हैं ? ऐसे में भ्रष्टाचार को कैसे हम पूरी तरह दोष दे सकते हैं ?
भ्रष्टाचार का काला साया का असर हर जगह नजर आता है। दिन हो या फिर रात, भ्रष्टाचार का भूत कहीं भी सफेदपोशों पर सवार रहता है। आखिर भ्रष्टाचारियों की हिम्मत इतनी बढ़ क्यों रही है ? जाहिर सी बात है, जनता जनार्दन यही सोच रही है, मेरा क्या जाता है ? यही बात हर किसी के दिमाग में है और भ्रष्टाचारी मजे कर रहे हैं। जब पानी सिर से उपर जाने के हालात बने हैं तो अब हम भ्रष्टाचार को दोष दे रहे हैं। भला, जनता का पैसा लुट रहा है और वहीं हम चुप हैं तो इसमें बेचारा भ्रष्टाचार को कटघरे में खड़े करने का क्या मतलब ? यहां तो वही बात हो रही है, करे कोई और भरे कोई। भ्रष्टाचारी अपनी तिजोरियों को भर रहे हैं और देश के खजाने को चूना पर चूना लग रहा है, बावजूद हमारी आंखें नहीं खुल रही है। इस परिस्थिति में हमें बेचारे भ्रष्टाचार की बेचारगी पर तरस खानी चाहिए।

वैसे भी हमें माफ करने की पुरानी आदत है। भ्रष्टाचार भी हमारे सामने आकर क्षमायाचना करे तो हमारा दिल पिघलना ही चाहिए और उसे माफ करने, एक भी पल का संकोच नहीं करना चाहिए। एक बात है, जनता खुद पर तरस खाती नहीं दिख रही है, ऐसा होता तो बरसों से बंद जुबान जरूर खुलती। भ्रष्टाचारी तो एसी में ऐश को कैस करने कोई भी पल नहीं गंवा रहा है और भ्रष्टाचारी आंकड़ों पर भी चार चांद लगा रहे हैं। मैं तो भ्रष्टाचार को बेचारा ही कहूंगा, क्योंकि वह तो बलि का बकरा है, जो न जाने कब से अपनी खैर मनाने की सोच रहा है, मगर जनता के जुबानी हथियार से केवल भ्रष्टाचार ही आहत हो रहा है, न कि भ्रष्टाचारी। बेचारा भ्रष्टाचार !

रविवार, 3 अप्रैल 2011

फेकोलॉजी के फायदे

हाल के कुछ बरसों में अंग्रेजी ने अपनी खासी पैठ जमायी है, मगर वहीं हिंग्लिश का भी गुणगान चरम पर है। जहां देखें, वहां इंग्लिश नहीं, हिंग्लिश का जलवा। अंग्रेजी में कई लॉजीकल तथा लॉजी से जुड़े विषयों एवं तथ्यों के बारे में अक्सर पढ़ने को मिलता है। मसलन, सोशियोलॉजी, एस्ट्रोलॉजी, ऑडियोलॉजी, टेक्नालॉजी समेत तमाम इंग्लिश डिक्शनरी में शब्द हैं, जिनके हिन्दी में अपने मायने व अर्थ हैं। जब इंग्लिश के साथ हिंग्लिश का खुमारी चढ़े तो जाहिर है, कुछ तो संकर वर्ण पैदा होंगे ही। ऐसा ही एक शब्द लोगों की बोलचाल में इजात हुआ है, फेकोलॉजी। यह एक ऐसा शब्द है, जो डिक्शनरी में कहीं भी नहीं मिलेगा, किन्तु अधिकतर मौके पर फेकोलॉजी का प्रयोग होता है। मैं कहता हू, क्यों न, फेकोलॉजी को अब डिक्शनरी में शामिल कर लिया जाए, क्योंकि फेकोलॉजी को बातूनी जीवन में आकंठ उतारने वालों की कमी नहीं है। इंग्लिश के साथ जब हम हिंग्लिश के अनेक शब्दों को आत्मसात कर सकते हैं, तो फिर फेकोलॉजी को अभयदान देने में क्यों पीछे हट सकते हैं ?
मेरे हिसाब से फेकोलॉजी से विरले ही अछूते रह पाते हैं। जहां-कहीं चर्चा शुरू होती है, फिर फेकोलॉजी की पकड़ मजबूत हो जाती है। अपनी बात को मनवाने तथा खुद को तिसमारखां साबित करने के लिए फेकोलॉजी में महारत हासिल होना जरूरी है। हर व्यक्ति फेकोलॉजी में दूसरे को पछाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ता। पूरी दमखम लगाने के बाद भी कोई आगे निकलने की कोशिश करता है तो फिर फेकोलॉजी का अचूक फण्डा कारगर साबित होता है। अभी परीक्षा का मौसम है, ऐसे में फेकोलॉजी ही सभी के प्रिय टॉपिक हैं और इसके चाहने वालों की कहीं कमी दिखाई नहीं देती। जिसने फेकोलॉजी पर विश्वास कर लिया, समझो उसका बेड़ा पार। मानो, हर जगह ऐसे ही लोगों का बोलबाला है। सब कहते हैं कि दुनिया गोल है, मगर जब कोई फेकोलॉजी का स्पेश्लिस्ट अपने पर उतर आए तो वह साबित कर सकता है कि दुनिया तिरछा है, या फिर लंबा है ? कहने का मतलब है, फेकोलॉजी की हर बात में दमखम होता है। तभी तो फेकोलॉजी का शिकार देश की जनता भी है। जो भी सत्ता की कुर्सी पर बैठता है, वह फेकोलॉजी के जतन से उबर नहीं पाता। पांच बरसों तक केवल फेकोलॉजी के सहारे ही जनता तमाशबीन बनी रहती है, सब फेकोलॉजी का कमाल है ?
बातों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना ही फेकोलॉजी का पहला गुणसूत्र है। मैंने भी महसूस किया है कि फेकोलॉजी में परिपक्व होना जरूरी है, क्योंकि इसके बगैर आप किसी को बेवकूफ नहीं बना सकते। किसी को ठग नहीं सकते। अपने घटिया उत्पाद उंची कीमत पर बेच नहीं सकते। जो काम किसी भी पैतरे से पूरे नहीं होते, समझो उसका एक ही उपाय है, फेकोलॉजी। फेकोलॉजी की दुनिया अपरंपार है, हर कोई फेकोलॉजी के दीवाने हैं। जिस किसी को यह बीमारी लग जाती है, उसकी जुबान की गाड़ी सौ से ज्यादा की स्पीड में दौड़ने लगती है।
एक बात और है, जब भी लगता है, कोई अपने पर हावी हो रहा है, तो फिर टिका दो फेकोलॉजीे। जब बातूनी मैदान में फेकोलॉजी उतरती है, उसके बाद तो कोई आगे-पीछे ठहरता ही नहीं। फेकोलॉजी का शिकार व्यक्ति की मानसिकता ऐसी हो जाती है, जैसे वही दुनिया का अंतिम व आखिरी चतुराई का जीता-जागता उदाहरण है। मुझे लगता है कि आप भी नजरें इनायत करें तो ऐसे अनगिनत फेकोलॉजी के महारथी मिल ही जाएंगे ? क्या कहते हैं, आप ?