
पदपूजा का आभा मंडल मुझे भी भाता है। मैं भी चाहता हूं कि मुझे कोई बड़ा पद मिले तो अपनी धौंस जमाउं। मैं अक्सर देखता हूं कि पद, कैसे रेवड़ियां की तरह बंटता है, कैसे कामचोर उंची कुर्सी में बैठकर जनता की गाढ़ी कमाई को चट करता है। उन जैसों को पद के मद में पैसा हजम करने का शुरूर, हर पल सवार रहता है। उन्हें बदहजमी का भी डर नहीं होता, जब कभी ऐसा लगता है तो सफेदपोश बनकर कमाए गए पैसे को काला चादर ओढ़कर लॉकरों में सुरक्षित रख दिया जाता है। मैं इतना जरूर जानता हूं कि पद मिलेगा तो ही, खुद की पूजा हो सकती है और पद से ही धन की बरसा होती है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि बिना पद के किसी को एक झोपड़ी बनाने, पूरी जिंदगी इंतजार करनी पड़ती है और एक वो होता है, जिसे पद मिलते ही एशो-आराम का मकान बैठे-ठाले नसीब हो जाता है। उन्हें देने वालों की कमी नहीं होती। पद नहीं होने के पहले भाग्य भी रूठा रहता है, मगर जैसे ही कोई पद मिलता है, उसके बाद तो विपन्नता की लहरें जिंदगी से खत्म हो जाती हैं।
किसी को पद मिलने के बाद जिस तरह पूजा होते देखता हूं तो, मुझे लगता है कि व्यक्ति कुछ नहीं होता, केवल पद होता है। पद मिलते ही साथ में चलने वाले सैकड़ों बिना बुलाए मिल जाते हैं। एक बात है, जब तक पद होता है, तब तक व्यक्ति की पूजा होती है। उसे कोई भी चीज की कमी नहीं होती, सभी चीजें बिना मांगे मिल जाती हैं। पदपूजा में लीन व्यक्ति, पदासीन व्यक्ति के मन को भांपने में ऐड़ी-चोटी, एक करता है। जिन चीजों की पदवी से लदा व्यक्ति लालसा नहीं रखता, वह भी घर पहुंच जाता है, उसे खुद पता नहीं रहता। यही कारण है कि आज-कल मैं हर पल सोचते रहता हूं कि दिन भर कलम खिसाई के बाद कुछ नहीं मिलता, उल्टा दिन भर सिर खपाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में पद पूजा का आभा मंडल मुझे खींच रहा है और मैं ओहदेदार पद पाने बेताब हूं, जिसे धन की बरसा भी हो और पूजा भी हो। कई बरसों से मन में केवल एक ही चाहत थी कि एक छोटा सा कलमकार बन जाउं और रोजी-रोटी भी चलती रहे, लेकिन जिस तरह पदपूजा होते देखता हूं, उसके बाद से मन, केवल पद के पीछे भाग रहा है। पद पूजा की किस्में भी आभामंडल के साथ बदल जाती हैं। सोच रहा हूं, मैं कौन सी पद पूजा का चोला ओढ़ूं, जिससे दाम भी मिल जाए और दमड़ी भी न जाए ?
बहुत बढ़िया भैया, हर किसी को अपनी जेब भरने के लिये पद पाने के लालसा रहती हैं ल
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