
कुछ लोग चेहरे पर चेहरा लगाकर इनकम का ऐसा जरिया तलाश लेते हैं, जहां एक बार हाथ मारो और फिर फुर्सत पाओ, पैर मारने से। कहा भी जाता है- मारो तो हाथी, लूटो तो खजाना। कुछ ऐसा ही चल रहा है, इनकम का तमाशा। जो जितना चाह रहा है, अपना हिस्सा निकाल ले रहा है, इसमें कोई रोक-टोक नहीं है। चोरी-चकारी के अपने इनकम होते हैं और जब स्टांप जैसे घोटाला होता है तो फिर इनकम के दायरे बढ़ जाते हैं। जब कोई बाबू छोटी-मोटी राशि घूस लेता है और वहीं करोड़ों की खरीदी कर खालमेल किया जाता है, यहां भी इनकम का सिस्टम बदल जाता है। आजकल काला धन का जिन्न सभी के दिमाग की बोतल में भरा हुआ है, वह बीच-बीच में बाहर निकलता है, उसके बाद फिर शुरू हो जाती है, भारी-भरकम इनकम की चर्चा। फलां व्यक्ति की कमाई इतनी है और फलां ने स्वीस बैंक में अनंत राशि जमा कर रखी है, जिसकी जानकारी पाने उसे खुद ही सिर खपाना पड़ेगा, क्योंकि कब कहां से, कितना जमा किया है, उसे मालूम कहां। सब हड़बड़ी में खेल होता है और हड़बड़ी में गड़बड़ी स्वाभाविक है। धन काला कहां हो सकता है, वो तो मन काला होता है। जब मन ही काला होगा तो फिर उस व्यक्ति की नजर में तो हर चीज काली होगी, न ?
देश की जनता से गद्दारी कर घोटाला करने की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है और यह समझना जैसे सिर से उपर हो चला है कि इनकम कैसे-कैसे होते हैं और कितने तरह के होते हैं ? गरीबों के इनकम तो बस केवल एक ही होती है, हाड़-तोड़ मेहनत। मगर सफेदपोशों का इनकम तो हाथ की सफाई में होता है और दिमाग की तिकड़मबाजी का परिणाम। गरीब कहां से तीन-पांच करे, क्योंकि भूख और पेट की चिंता के बाद फिर दूसरी बात इनकम की कहां रह जाती है ? जिनका पेट भरा है और कई पीढ़ी बैठकर खा सकेगी, वैसे ही लोगों को इनकम की चिंता रहती है। यह भी देख लोग भौंचक हैं कि घर की तिजोरी भी इनकम रखने के लिए कम पड़ जा रही है और बैंकों के लॉकर गुलजार हैं। ताला लगने के बाद लॉकर कब खुलेगा, उस इनकम के पट्टेदार को भी पता नहीं रहता। उस लॉकर में रखा इनकम छटपटाता रहता है, आखिर मैं कब बाहर निकलूंगा ? छापा पड़ने के बाद इनकम लॉकर से बाहर निकलकर, लंबी सांस लेते हुए कहता है कि अच्छा हुआ, नहीं तो मैं भीतर ही रहता और जिसने मुझे अंदर रखा था, वह अंदर ही नहीं होता।
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