देश में प्रधानमंत्री का पद कितना महत्वपूर्ण होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। यहां तो एक अनार-सौ बीमार वाली स्थिति हर पल बनी रहती है। कोई प्रधानमंत्री की कुर्सी को छोड़ा नहीं, उससे पहले कतार में दर्जनों नजर आते हैं। कइयों की हालत ऐसी है कि प्रधानमंत्री को ‘प्रधानमंत्री’ नहीं समझते, उंगली करने से बाज नहीं आते। जब मन करता है, दूसरे को प्रधानमंत्री बनाने का हिमाकत करने लगते हैं। यह नहीं सोचते कि अभी प्रधानमंत्री बनकर जो बैठा है, देश को भी बड़े आनंद के साथ चला रहा है, उसे कितना बुरा लगेगा। करोड़ों लोगों के बीच से निकलकर, ऐसे पद को सुशोभित करने का सौभाग्य हर किसी को थोड़ी न मिलता है। जिन्हें मिल गया है, उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी का भरपूर रसपान करने पूरी छूट दी जानी चाहिए, लेकिन टांग खींचने वाले बाज आए, तब ना। हर धतकरम करने लगे रहते हैं, पूरी छटपटाहट रहती है, कुर्सी से उतारने की, किन्तु कुर्सी पर अंगद के पाव की तरह जमे होने के बाद, कोई कहां हटता है ?
खैर, मूल बात पर आते हैं कि बचपन में मैंने जो सपना संजोए रखा था, वह आज भी ताजा है। चाहता तो हूं कि मैं प्रधानमंत्री बनूं, लेकिन इतनी हैसियत नहीं कि चुनाव लड़ सकूं। इतने खर्चीले चुनाव का बोझ सहना मेरे बस की बात नहीं है। सोच रहा हूं, पिछले दरवाजे का सहारा ले लूं, जहां से कई खासमखास पहुंचते हैं। बिना चुनाव लड़े, कुर्सी तक पहुंच जाउं, इसके लिए हर तरह के गणित बिठाने की जुगत में लगा हूं। देखता हूं, शतरंज के चौरस में अपनी गोटी भारी पड़ती है कि नहीं। मेरा मन प्रधानमंत्री बनने के लिए तड़प रहा है, लेकिन मेरा रास्ता ही साफ नहीं हो रहा है। रास्ते में कई रोड़े नजर आ रहे हैं। कई लोग मुझे हूटिंग तक करने लग गए हैं। इससे मेरा मनोबल टूटने वाला नहीं है, मैं पूरी तरह ठानकर बैठा हूं कि कुछ भी हो जाए, प्रधानमंत्री बनकर दिखाना ही है और स्कूल में पढ़ते समय जो ख्वाब, देश को अग्रसर करने का देखा था, उसे पूरा करना ही है।
प्रधानमंत्री बनने के लिए मेरा मन हिलोर मार रहा था, इसी बीच मेरी अंतरात्मा से आवाज आई कि यह पद काजल की कोठरी की तरह हो गया है। आजादी के समय, जो हालात थे, वह आज नहीं है। एक दौर था, जब पद को लात मारा जाता था, अब पद को शिरोधार्य किया जाता है, भले ही जनता के बद्दुआओं के जितने भी जूते पड़ जाए। आज मैं देख रहा हूं कि तोहफे में ‘प्रधानमंत्री पद’ मिलता है और उसके बाद भ्रष्टाचार, महंगाई की तोहमत, सिर पर उठानी पड़ती है।
इन बातों को सोच-सोचकर मेरा मन भर आया है कि मैं, प्रधानमंत्री बनने के सपने को खटकने तक नहीं दे रहा हूं। इतना तय है कि बड़ा बनना है तो बड़े सपने देखो। कुछ नहीं बन पाए तो कतार में कहीं न कहीं, कुछ हाथ आएगा ही। मन से प्रधानमंत्री बनने का भूत उतर गया है, लेकिन खुद को कतार में खड़े होने का अहसास पाता हूं। मेरे जैसे और भी कई हैं, जो पीएम वेटिंग की लिस्ट में हैं। इस फेहरिस्त में मैं दूर-दूर तक नहीं ठहरता। मेरा नंबर आने वाला नहीं है, इसलिए मैं कहता हूं कि ‘मुझे नहीं बनना प्रधानमंत्री’। ऐसी स्थिति में न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।
खैर, मूल बात पर आते हैं कि बचपन में मैंने जो सपना संजोए रखा था, वह आज भी ताजा है। चाहता तो हूं कि मैं प्रधानमंत्री बनूं, लेकिन इतनी हैसियत नहीं कि चुनाव लड़ सकूं। इतने खर्चीले चुनाव का बोझ सहना मेरे बस की बात नहीं है। सोच रहा हूं, पिछले दरवाजे का सहारा ले लूं, जहां से कई खासमखास पहुंचते हैं। बिना चुनाव लड़े, कुर्सी तक पहुंच जाउं, इसके लिए हर तरह के गणित बिठाने की जुगत में लगा हूं। देखता हूं, शतरंज के चौरस में अपनी गोटी भारी पड़ती है कि नहीं। मेरा मन प्रधानमंत्री बनने के लिए तड़प रहा है, लेकिन मेरा रास्ता ही साफ नहीं हो रहा है। रास्ते में कई रोड़े नजर आ रहे हैं। कई लोग मुझे हूटिंग तक करने लग गए हैं। इससे मेरा मनोबल टूटने वाला नहीं है, मैं पूरी तरह ठानकर बैठा हूं कि कुछ भी हो जाए, प्रधानमंत्री बनकर दिखाना ही है और स्कूल में पढ़ते समय जो ख्वाब, देश को अग्रसर करने का देखा था, उसे पूरा करना ही है।
प्रधानमंत्री बनने के लिए मेरा मन हिलोर मार रहा था, इसी बीच मेरी अंतरात्मा से आवाज आई कि यह पद काजल की कोठरी की तरह हो गया है। आजादी के समय, जो हालात थे, वह आज नहीं है। एक दौर था, जब पद को लात मारा जाता था, अब पद को शिरोधार्य किया जाता है, भले ही जनता के बद्दुआओं के जितने भी जूते पड़ जाए। आज मैं देख रहा हूं कि तोहफे में ‘प्रधानमंत्री पद’ मिलता है और उसके बाद भ्रष्टाचार, महंगाई की तोहमत, सिर पर उठानी पड़ती है।
इन बातों को सोच-सोचकर मेरा मन भर आया है कि मैं, प्रधानमंत्री बनने के सपने को खटकने तक नहीं दे रहा हूं। इतना तय है कि बड़ा बनना है तो बड़े सपने देखो। कुछ नहीं बन पाए तो कतार में कहीं न कहीं, कुछ हाथ आएगा ही। मन से प्रधानमंत्री बनने का भूत उतर गया है, लेकिन खुद को कतार में खड़े होने का अहसास पाता हूं। मेरे जैसे और भी कई हैं, जो पीएम वेटिंग की लिस्ट में हैं। इस फेहरिस्त में मैं दूर-दूर तक नहीं ठहरता। मेरा नंबर आने वाला नहीं है, इसलिए मैं कहता हूं कि ‘मुझे नहीं बनना प्रधानमंत्री’। ऐसी स्थिति में न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।
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