भ्रष्टाचार का भूत ने देश की जनता के दिलो-दिमाग को झकझोरा ही है, साथ ही सरकार की भी चूलें हिला कर रख दी हैं। भ्रष्टाचार ही है, जिसने कईयों के मुंह बंद करा दिए हैं। भ्रष्टाचार के भूत पर लगाम लगाने सरकार बेबस हो गई है। मैं यही कहूंगा, अभी स्थिति ऐसी हो गई कि भ्रष्टाचार को देश को समर्पित कर देना चाहिए, क्योंकि अवाम ने उसे अपनाया हुआ है, बरसों-बरस से। आने वाले दिनों में भी भ्रष्टाचार, जलवा बिखरेता रहेगा, इसमें किसी का क्या जाता है। जैसा चल रहा है, चलने दो ? सरकार भी यही चाहती है। सत्ता के मद में चूर सरकार के संग-संग चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ करोड़ों ने हाथों ने ‘अनशन यज्ञ’ में आहुति दे दी है। हजारों-हजार हाथ जैसा चाह रहे हैं, वैसा नहीं हो रहा है, उल्टे भ्रष्टाचार का दिनों-दिन नाम रौशन होता जा रहा है। भ्रष्टाचार का मौज देखिए, विदेशों में भी अपनी शानो-शौकत दिखा रहा है। उसे काले-धन का ‘तमगा’ मिल गया है। जितना चाहे ऐड़ियां रगड़ लो, फिर भी भ्रष्टाचार के सामने बौने ही रहोगे।
आज हर जुबान पर भ्रष्टाचार ही छाया हुआ है। हो भी क्यों न, इतनी हाय-तौबा कब मची है ? भ्रष्टाचार, स्वाभाविक तौर पर इतराएगा ही कि अकेले, उसने देश की जनता को भी जगा दिया और सरकार को भी डरा गया। तभी तो देश से भ्रष्टाचार का भूत भगाने के लिए हर घर से ‘नए भारत का गांधी’ निकल रहा है। ऐसा लग रहा है, जैसे भ्रष्टाचार अब देश से मिटकर रहेगा, मगर हमने उसे इतना अपना लिया है तो इतनी जल्दी भला कैसे साथ छूट सकता है ?
मैं यही कहूंगा कि आजाद भारत के बाद से ही हम भ्रष्टाचार के साथ जी रहे हैं। ये अलग बात है कि नई बोतल से पुराना जिन्न बाहर आ गया है। भ्रष्टाचार रूपी जिन्न, देश में पहले भी दिखाई देता रहा है, परंतु आज उसका रूप जनता की नजर में विकराल ले लिया है। जनता कह रही है कि अब उसकी त्रासदी सहन नहीं होती। जितना धत-करम करना था, कर लिए। अब तो हमारा पीछा छोड़ो। भ्रष्टाचार, हमारी रगों में घुस गया है, उसे बाहर निकालने के लिए निश्चित ही कोई वैक्सीन ही काम आएगी।
भ्रष्टाचार देश से चला भी गया तो हमारा इतना फर्ज तो बनता है कि चौक-चौराहों में उसकी प्रतिमा स्थापित हो जाए। गलियों का नामकरण ‘भ्रष्टाचार’ के नाम पर हो जाए। तब कहीं जाकर हमारी आने वाली पीढ़ी, भ्रष्टाचार को समझ पाएगी। इतिहास में दर्जनों वाकिये दर्ज होते हैं, लेकिन कितने ऐसे होते हैं, जो गुलिस्तां में शामिल होते हैं ? हालांकि, भ्रष्टाचार ने इतना नाम कमा लिया है और देश के हर जेहन में इस कदर समा गया है, ऐसे हालात में भ्रष्टाचार का इतना हक तो बनता है कि उसे इतनी बेदर्दी से बिदा न किया जाए।
वैसे भी बरसों का साथ, एकबारगी नहीं छोड़ना चाहिए, ऐसा हम कहते-सुनते आ रहे हैं। कई दशकों से भ्रष्टाचार भी हमारी जिंदगी का हिस्सा रहा है, इसे बेरूखी से रूखसत नहीं करना चाहिए। भ्रष्टाचार ने अपने अधिकारों के लिए सोई जनता को जगाया है, इसके बाद उसे इतना अभयदान मिलना चाहिए और उसकी छह दशक की सेवा के लिए हमें देश को उसे समर्पित कर देना चाहिए। ये तो मैंने सूझा दिया, अब अंतिम निर्णय तो जनता-जनार्दन, अन्ना टीम और सरकार को ही लेना है। देखते हैं, आगे होता है, क्या ?
आज हर जुबान पर भ्रष्टाचार ही छाया हुआ है। हो भी क्यों न, इतनी हाय-तौबा कब मची है ? भ्रष्टाचार, स्वाभाविक तौर पर इतराएगा ही कि अकेले, उसने देश की जनता को भी जगा दिया और सरकार को भी डरा गया। तभी तो देश से भ्रष्टाचार का भूत भगाने के लिए हर घर से ‘नए भारत का गांधी’ निकल रहा है। ऐसा लग रहा है, जैसे भ्रष्टाचार अब देश से मिटकर रहेगा, मगर हमने उसे इतना अपना लिया है तो इतनी जल्दी भला कैसे साथ छूट सकता है ?
मैं यही कहूंगा कि आजाद भारत के बाद से ही हम भ्रष्टाचार के साथ जी रहे हैं। ये अलग बात है कि नई बोतल से पुराना जिन्न बाहर आ गया है। भ्रष्टाचार रूपी जिन्न, देश में पहले भी दिखाई देता रहा है, परंतु आज उसका रूप जनता की नजर में विकराल ले लिया है। जनता कह रही है कि अब उसकी त्रासदी सहन नहीं होती। जितना धत-करम करना था, कर लिए। अब तो हमारा पीछा छोड़ो। भ्रष्टाचार, हमारी रगों में घुस गया है, उसे बाहर निकालने के लिए निश्चित ही कोई वैक्सीन ही काम आएगी।
भ्रष्टाचार देश से चला भी गया तो हमारा इतना फर्ज तो बनता है कि चौक-चौराहों में उसकी प्रतिमा स्थापित हो जाए। गलियों का नामकरण ‘भ्रष्टाचार’ के नाम पर हो जाए। तब कहीं जाकर हमारी आने वाली पीढ़ी, भ्रष्टाचार को समझ पाएगी। इतिहास में दर्जनों वाकिये दर्ज होते हैं, लेकिन कितने ऐसे होते हैं, जो गुलिस्तां में शामिल होते हैं ? हालांकि, भ्रष्टाचार ने इतना नाम कमा लिया है और देश के हर जेहन में इस कदर समा गया है, ऐसे हालात में भ्रष्टाचार का इतना हक तो बनता है कि उसे इतनी बेदर्दी से बिदा न किया जाए।
वैसे भी बरसों का साथ, एकबारगी नहीं छोड़ना चाहिए, ऐसा हम कहते-सुनते आ रहे हैं। कई दशकों से भ्रष्टाचार भी हमारी जिंदगी का हिस्सा रहा है, इसे बेरूखी से रूखसत नहीं करना चाहिए। भ्रष्टाचार ने अपने अधिकारों के लिए सोई जनता को जगाया है, इसके बाद उसे इतना अभयदान मिलना चाहिए और उसकी छह दशक की सेवा के लिए हमें देश को उसे समर्पित कर देना चाहिए। ये तो मैंने सूझा दिया, अब अंतिम निर्णय तो जनता-जनार्दन, अन्ना टीम और सरकार को ही लेना है। देखते हैं, आगे होता है, क्या ?
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