मेरा हाल ही में कृपापात्र आशीर्वाद के गुण से लबरेज ऐसे ही व्यक्ति से पाला पड़ा। उसने बताया कि कैसे किसी की छत्रछाया में आगे बढ़ा जा सकता है और अपनी जुगाड़ की रोटी सेंकी जा सकती है। उसने कृपापात्र से मिले आशीर्वाद से मिली उपलब्धि गिनानी शुरू कर दी और गुणगान में ऐसे रम गया, जैसे हम देवी-देवताओं की आरती में लीन हो जाते हैं। वह तो पूरी तरह भाव-विभोर था और बताया कि जिस एयर कंडीशनर मकान में रह रहा है, वह उसका अपना नहीं है। बस कृपापात्र आशीर्वाद की महिमा है। साथ ही उसने बताया कि खर्चा-पानी की चिंता ही नहीं रहती, बस थोड़ी-बहुत उस व्यक्ति की सेवा व आवभगत में जुटना पड़ता है, जिसका कृपापात्र आशीर्वाद है। बाकी दिन ऐश को कैस करते रहो।
वह व्यक्ति थोड़े समय में इतना घुल-मिल गया कि पूरी तहर बेबाक हो गया। वह कृपापात्र आशीर्वाद का अफसाना गिनाते थक नहीं रहा था और उसने बताया कि आज जिसकी कृपापात्र आशीर्वाद उसे मिल रहा है, वैसे दौर से वह ‘दरियादिली’ भी गुजर चुका है। इसके बाद तो ऐसा लगा, जैसे वह अपना दिल खोलकर बैठ गया है और उसने एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने भविष्य की ढेरों तमन्नाएं भी गिना दीं और कहा कि उस पर भी कृपापात्र आशीर्वाद का शुरूर सवार हो गया है। लिहाजा, वह चाहता है कि जैसे भी करके कोई उंचे ओहदे पर पहुंच जाए, उसके बाद वह भी ‘कृपापात्र आशीर्वाद’ को खूब लुटाएगा। उसका कहना था कि अभी तो गणित की तरह पूरा गुणसूत्र सीख रहा हूं, जिससे बाद में फेल होने की कहीं गुंजाइश ही न रहे। उसने बताया कि जिसने भी कृपापात्र आशीर्वाद का लाभ लेने हड़बड़ी की, वह उससे उबर नहीं पाया है। ऐसे में वह समझ गया है कि फूंक-फूंककर कदम रखने में ही भलाई है। जब तक किसी को बरगलाना न आए, तब तक भला कैसे कृपापात्र आशीर्वाद के काबिल हुआ जा सकता है। जिस तरह लंबा वक्त बिताए बिना किसी क्षेत्र में महारत हासिल नहीं किया जा सकता, उसी तरह कृपापात्र आशीर्वाद लेने के लिए अनुभव के साथ विश्वासपात्र भी बनना पड़ता है, क्योंकि यह आशीर्वाद उसी को नसीब होता है, जो अपना काम-धाम छोड़कर पिछलग्गू बना रहता है।
अब तो मैं भी कृपापात्र आशीर्वाद पाने के फिराक में हूं, मगर मुझे अपने से ही फुरसत नहीं है। किसी के आगा-पीछा की हिसाब-किताब रखने का वक्त ही कहां ? ऐसे में समझ में आ रहा है कि कृपापात्र आशीर्वाद का प्रतिफल हम जैसे लोगों के लिए नहीं है। इसके बाद किसी तरह अपने मन को मनाया, मगर वह रह-रहकर कृपापात्र आशीर्वाद का तान छेड़ ही देता है, मगर मुझे पता है कि इस संगीत के आनंद से मेरा मेल नहीं है। अब ऐसे में क्या किया जा सकता है ?
वह व्यक्ति थोड़े समय में इतना घुल-मिल गया कि पूरी तहर बेबाक हो गया। वह कृपापात्र आशीर्वाद का अफसाना गिनाते थक नहीं रहा था और उसने बताया कि आज जिसकी कृपापात्र आशीर्वाद उसे मिल रहा है, वैसे दौर से वह ‘दरियादिली’ भी गुजर चुका है। इसके बाद तो ऐसा लगा, जैसे वह अपना दिल खोलकर बैठ गया है और उसने एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने भविष्य की ढेरों तमन्नाएं भी गिना दीं और कहा कि उस पर भी कृपापात्र आशीर्वाद का शुरूर सवार हो गया है। लिहाजा, वह चाहता है कि जैसे भी करके कोई उंचे ओहदे पर पहुंच जाए, उसके बाद वह भी ‘कृपापात्र आशीर्वाद’ को खूब लुटाएगा। उसका कहना था कि अभी तो गणित की तरह पूरा गुणसूत्र सीख रहा हूं, जिससे बाद में फेल होने की कहीं गुंजाइश ही न रहे। उसने बताया कि जिसने भी कृपापात्र आशीर्वाद का लाभ लेने हड़बड़ी की, वह उससे उबर नहीं पाया है। ऐसे में वह समझ गया है कि फूंक-फूंककर कदम रखने में ही भलाई है। जब तक किसी को बरगलाना न आए, तब तक भला कैसे कृपापात्र आशीर्वाद के काबिल हुआ जा सकता है। जिस तरह लंबा वक्त बिताए बिना किसी क्षेत्र में महारत हासिल नहीं किया जा सकता, उसी तरह कृपापात्र आशीर्वाद लेने के लिए अनुभव के साथ विश्वासपात्र भी बनना पड़ता है, क्योंकि यह आशीर्वाद उसी को नसीब होता है, जो अपना काम-धाम छोड़कर पिछलग्गू बना रहता है।
अब तो मैं भी कृपापात्र आशीर्वाद पाने के फिराक में हूं, मगर मुझे अपने से ही फुरसत नहीं है। किसी के आगा-पीछा की हिसाब-किताब रखने का वक्त ही कहां ? ऐसे में समझ में आ रहा है कि कृपापात्र आशीर्वाद का प्रतिफल हम जैसे लोगों के लिए नहीं है। इसके बाद किसी तरह अपने मन को मनाया, मगर वह रह-रहकर कृपापात्र आशीर्वाद का तान छेड़ ही देता है, मगर मुझे पता है कि इस संगीत के आनंद से मेरा मेल नहीं है। अब ऐसे में क्या किया जा सकता है ?
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